समीर पारीख।।
सीनियर सायकायट्रिस्ट
Depression Causes, Symptoms and Treatment: कोरोना वायरस के चलते कई लोगों में तनाव की समस्या काफी हद तक बढ़ गई है। आंकड़ों के मुताबिक, डिप्रेशन (Depression Causes, symptoms and treatment) दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी है। दुनिया भर के करीब 30 करोड़ से भी ज्यादा लोग डिप्रेशन का शिकार हैं। लेकिन कोरोना वायरस आने के बाद डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों की संख्या काफी तेजी से बढ़ गई है।
बीते एक साल में मेंटल हेल्थ बड़ी बीमारी बनकर उभरी है, इससे कैसे निकलें?
दरअसल, कोरोना अचानक से आया। हम उसके लिए तैयार ही नहीं थे। इस दौरान बड़े स्तर पर बदलाव आए। शुरू में सिर्फ 21 दिन का लॉकडाउन था लेकिन हममें से किसी ने भी नहीं सोचा था कि लॉकडाउन इतना लंबा चलेगा और इससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा। लोगों की मनोदशा इस हद तक बदल जाएगी। किसी पढ़ाई प्रभावित हुई तो किसी का काम। जब भी जीवन में बदलाव आता है तो तनाव आना स्वभाविक है। ध्यान देने की बात यह है कि कोरोना में जहां घर परिवार में रिश्तों में सपोर्ट सिस्टम नहीं था, वहां चीजें ज्यादा खराब हुई हैं। जहां रिश्ते मजबूत थे, वहां कोविड का असर बेहद कम देखने को मिला।
डिप्रेशन का सबसे बड़ा कारण क्या है?
कोविड को हमें दो हिस्सों में समझने की जरूरत है। इस दौर में बहुत सारे लोगों ने काफी स्ट्रगल किया है लेकिन काफी लोगों ने एक-दूसरे की मदद भी की है। कोविड में बड़े स्तर पर बदलाव लाने की जरूरत है, चाहे फिर वो पर्यावरण की बात हो या रिश्तों की। खास बात यह है कि बच्चों ने बहुत संयम से अपना एक साल निकाला है। यह एक काबिलेतारीफ बात है। हमने इस साल में काफी कुछ खुद सीखा। लेकिन हमें ये समझने की जरूरत है कि जब हमारे शरीर में सेरोटोनिन नामक केमिकल की कमी हो जाती है तो डिप्रेशन की स्थिति बनती है।
डिप्रेशन के लक्षण क्या है
डिप्रेशन एक मेडिकल प्रॉब्लम है। अगर ये लक्षण आपको दो हफ्ते से अधिक हैं तो आप तनाव से ग्रस्त हो सकते हैं। ऐसी कंडिशन में आपको एक्सपर्ट से बातचीत करना चाहिए या अपने नजदीकी डॉक्टर से इस पर चर्चा करें। डिप्रेशन के प्रमुख लक्षण हैंः
- उदासीनता
- काम करना अच्छा न लगना
- खुशी न मिलना
- अकेलापन महसूस होना
- जीवन या भविष्य अंधकारमय लगना
- पहले जो कर रहे थे, अब वो अच्छा नहीं लगना
- नींद प्रभावित होना
- फोकस नहीं कर पाना
- लाइफ में मजा नहीं आना
डिप्रेशन का इलाज क्या है?
अच्छी बात यह है कि दवाओं की मदद से दिमाग के केमिकल में जो गड़बड़ी हुई है, उसे बैलेंस किया जाता है। साइकोथेरेपी की भी मदद ली जा सकती है। इसमें ये सुनिश्चित किया जाता है कि हम किस तरह से सोचते हैं, हमारा बिहेवियर कैसे है, लाइफ में क्या बदलाव हुए हैं, आदि इन सब काम किया जाता है। सोशल सपोर्ट सबसे बड़ा फैक्टर है। लोगों से बातचीत कर सकते हैं। तनाव को ठीक करने में जितनी मदद लेंगे, उतना बेहतर होगा। डिप्रेशन को बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें, नहीं तो समस्या बढ़ेगी। जितना इस पर बात करेंगे उतना बेहतर है।
लोगों को समझ नहीं आता कि तनाव एक बीमारी भी है?
यह बिल्कुल सच बात है कि लोगों को लगता है कि यह सिर्फ मूड स्विंग होने जैसा है, कुछ देर में ठीक हो जाएगा। लेकिन यह बिल्कुल गलत धारणा है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचना चाहिए। इसका एक कारण यह है कि इस बारे में एक्सपर्ट्स की बेहद कमी रही। लोगों में भी इस बारे में जागरुकता कम देखी गई है। लोग खुलकर बात नहीं करना चाहते हैं। लोगों के मन में तनाव से जुड़ी काफी गलतफहमियां हैं। डिप्रेशन से उभरने में अगर आपकी कोई मदद करेगा तो अपने आप आपकी विचारधारा बदलेगी। आप जल्द इससे रिकवर हो पाएंगे। लेकिन अगर हेल्प ही नहीं पहुंचेगी या आप खुद भी नहीं हेल्प मांगेंगे तो फिर ये समस्या जस की तस बनी रहेगी।
कैसे पता लगाएं कि हमें डिप्रेशन है?
अगर हमारी लाइफस्टाइल खराब हो रही है, हमारा बिहेवियर खराब हो रहा है तो ऐसी कंडीशन में समझने की जरूरत है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। इस बारे में अपने साथियों या घर के सदस्यों से बात करें। अपनी परेशानियां अपनों के साथ साझा करें। हो सकता है कि ऐसी कंडिशन में आप समस्या के बढ़ने से पहले ही उसके समाधान तक पहुंच जाएं।
कब जाएं काउंसलर या साइकॉलजिस्ट के पास?
अगर ऊपर बताए लक्षणों में से कुछ भी आपके साथ हो रहा है तो आप किसी भी कांउसलर, सायकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट के पास जा सकते हैं। हो सकता है कि आप सिर्फ काउंसलिंग या साइकोथेरपी से ठीक हो जाएं। अगर दवा की जरूरत होगी तो सायकायट्रिस्ट की मदद लेनी होगी। लेकिन इन सबसे पहले अपने लक्षणों को बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करें। आप अपने नजदीकी क्लिनिक या डॉक्टर के पास जाएं। आप अपने फैमिली फिजिशियन या जनरल फिजिशियन से भी इस बारे में डिस्कस कर सकते हैं।
पीड़ित को सपोर्ट करें
मरीज की निंदा न करें। उसे दोष भी न दें। उसे ताना न मारें। किसी काम के लिए जोर-जबरदस्ती न करें। हां, आप जानकारी बढ़ाने में उसकी मदद करें। सही सोर्स से वे कैसे जानकारी जुटाकर समस्या का समाधान कर सकते हैं, इस पर फोकस करें। उसको हेल्प लेने के लिए सपोर्ट करें। उनके साथ डॉक्टर के पास जाएं और उसका मनोबल बढ़ाएं।
मरीज बात न करे तो क्या करें?
मरीज कई बार जानता ही नहीं है कि उसे कोई मेंटल दिक्कत है। अगर समझ आता है तो भी वह एक्सपर्ट की मदद लेने से परहेज करता है क्योंकि उसे लगता है कि दिमागी बीमारी का मतलब पागलपन है। ऐसी स्थिति में आप बेहतर जानकारी जुटाने में उनकी मदद कर सकते हैं। अपना नॉर्मल कनेक्शन बनाए रखें। मरीज से बातचीत करते रहें। साथ में कोशिश करें कि उनमें एक्सपर्ट से मिलने की इच्छा जागे या वह बातचीत के लिए तैयार हो जाए।
(लेखक फोर्टिस हॉस्पिटल में मेंटल हेल्थ और बेहिवियरस साइंसेज डिपार्टमेंट के डायरेक्टर हैं।यहां दी गई जानकारी हेल्थओपीडी से डॉ. पारिख की बातचीत पर आधारित है।)
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