कैंसर (Cancer) का नाम सुनते ही मन में डर सा लगने लगता है। लेकिन अगर इसके बारे में सही जानकारी हो और शुरुआती स्टेज (Cancer Starting Stage) में ही इसके बारे में पता चल जाए तो कैंसर को मात दी जा सकती है। कैंसर कई रोगों का एक समूह है, जिसमें कोशिकाएं असाधारण रूप से बढ़ने लग जाती हैं। ये कोशिकाएं बढ़ कर ट्यूमर (Tumor) का रूप ले लेती हैं, जो असाधारण रूप से बढ़ी हुई चर्बी की एक गांठ होती है। कैंसर शरीर के किसी भी हिस्से या अंग में मौजूद कोशिकाओं को प्रभावित कर सकता है। इसमें प्रभावित कोशिकाएं विभाजित होती रहती हैं। या फिर फैलने लगती है। इसके परिणामस्वरूप ट्यूमर बढ़ने लगता है या फिर कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाता है। कैंसर में होने वाले ट्यूमर आमतौर पर दो प्रकार के होते, जिन्हें बिनाइन और मालिग्नैंट के नाम से जाना जाता है। बिनाइन ट्यूमर शरीर के एक से दूसरे हिस्से में नहीं फैलते है, जबकि मालिग्नैंट फैलने (Cancer Cells) लग जाते हैं।
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कैंसर के शुरुआती लक्षण क्या हैं व पहचान कैसे करें?
कैंसर शरीर के किस हिस्से में हुआ है लक्षण भी उसी के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। इसके अलावा कुछ विशिष्ट लक्षण भी देखे जा सकते हैं, जो कैंसर के प्रकार और कैंसर के स्थान पर निर्भर करते हैं। हालांकि कुछ अन्य लक्षण भी हैं, जो कैंसर के साथ देखे जा सकते हैं जैसे –
- शरीर का वजन अचानक से कम या ज्यादा होना
- थकान और कमजोरी महसूस होना
- त्वचा के किसी हिस्से में बार-बार नील पड़ना
- त्वचा के नीचे गांठ महसूस होना
- लगातार एक महीने से खांसी या सांस लेने में कठिनाई होना
- त्वचा में बदलाव होना (जैसे त्वचा पर किसी गांठ के आकार या संरचना में कुछ बदलाव होना)
- त्वचा में जल्दी निशान पड़ जाना
- पाचन रोग जैसे दस्त या कब्ज होना
- निगलने में कठिनाई होना
- भूख कम लगना
- आवाज में बदलाव होना
- बार-बार बुखार होना
- रात को पसीने आना
- मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना
- घाव के ठीक होने की प्रक्रिया धीमी होना
- बार-बार संक्रमण होना
कैंसर आमतौर पर डीएनए में कुछ बदलाव या उत्परिवर्तन होने के कारण होता है। सरल भाषा में डीएनए को कोशिकाओं का मस्तिष्क कहा जाता है, जो उन्हें गुणन (मल्टीप्लाइकेशन) करने के निर्देश देता है। जब इन निर्देशों में कोई खराबी हो जाती है, तो कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लग जाती हैं और परिणामस्वरूप कैंसर विकसित हो जाता है। तंबाकू या उससे बने उत्पाद जैसे सिगरेट या चुईंगम आदि का लंबे समय तक सेवन करना मुंह व फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है।
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● लंबे समय से अल्कोहल का सेवन करना लिवर कैंसर समेत अन्य कई हिस्सों में कैंसर होने के खतरे को बढ़ा देता है।
● अस्वास्थ्यकर आहार और रिफाइंड खाद्य पदार्थ जिनमें फाइबर कम होता है, वे कोलन कैंसर होने के खतरे को बढ़ा सकते हैं।
● कुछ प्रकार के हार्मोन भी कैंसर का कारण बन सकते हैं, जैसे टेस्टोस्टेरोन का स्तर बढ़ना प्रोस्टेट कैंसर और एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ना ब्रेस्ट कैंसर होने के खतर को बढ़ा सकता है।
● उम्र बढ़ने के साथ-साथ भी कुछ प्रकार के कैंसर होने का खतरा बढ़ता रहता है, जैसे कोलन कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर आदि।
● परिवार में पहले किसी को कैंसर होना भी इसका खतरा बढ़ा देता है, इसमें अधिकतर ब्रेस्ट कैंसर के मामले देखे जाते हैं।
कैंसर में कौन-कौन सी जांच कब होती है-
कैंसर के लिए शारीरिक जांच करते समय डॉक्टर सबसे पहले मरीज की उम्र, पिछली स्वास्थ्य स्थिति, पारिवारिक रोग और लक्षणों की जांच करते हैं। इसके अलावा मरीज व उसके परिवारजनों से भी कुछ सवाल पूछे जाते हैं, जिनकी मदद से कैंसर संबंधी जानकारी लेने की कोशिश की जाती है। यदि डॉक्टर को भी कैंसर पर संदेह होता है, तो वे कुछ टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं, जिनकी मदद से कैंसर की पुष्टि की जाती है –
● फिजिकल टेस्ट-
जिसकी मदद से व्यक्ति के स्वास्थ्य संबंधी असामान्यताओं का पता लगाया जाता है।
● लैब टेस्ट –
व्यक्ति के रक्त का सैंपल लेकर कुछ टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें सीबीसी, ईएसआर, सी-रिएक्टिव
प्रोटीन, लिवर फंक्शन टेस्ट और किडनी फंक्शन टेस्ट शामिल हैं।
● इमेजिंग टेस्ट –
इसमें एक्स रे, सीटी स्कैन, एमआरआई, बेरियम मील स्टडी, बोन डेन्सिटी स्कैन, पीईटी स्कैन,
एसपीईसीटी स्कैन और यूएसजी स्कैन।
● बायोप्सी –
इसमें ट्यूमर या त्वचा के प्रभावित हिस्से में ऊतक का छोटा सा सैंपल लिया जाता है, जिसकी
माइक्रोस्कोप की मदद से जांच की जाती है।
● इलाज के तरीके :
- सर्जरी: शरीर के जिस अंग में कैंसर का ट्यूमर बना है, उसे ऑपरेशन कर निकाल देने से
परेशानी काफी हद तक दूर हो जाती है। - कीमोथेरपी: इसमें आईवी यानी इंट्रा वेनस थेरपी के जरिए दवा देकर कैंसर को रोकने की
कोशिश होती है। आजकल कीमोथेरपी के लिए सूई की जगह टैब्लेट्स का उपयोग होने लगा
है। - रेडियोथेरपी: इस प्रोसेस में रेडिएशन का ज्यादा डोज देकर ट्यूमर को खत्म किया जाता
है। रेडियोथेरपी कैंसर दूर करने में मुख्य भूमिका नहीं निभाता बल्कि यह दूसरे तरीके से
इलाज होने पर कैंसर को फैलने से रोकने में सहायता करता है। - इम्यूनोथेरपी: इसके जरिए शरीर के इम्यून सिस्टम को ही कैंसर से लड़ने के लिए तैयार
कियाजाता है। इसे बायलॉजिकल थेरपी भी कह सकते हैं। - टार्गेटेड थेरपी: इसमें स्मॉल मॉलिक्यूलर ड्रग्स होते हैं जो सीधे कैंसर सेल्स पर हमला करते हैं।
इससे दूसरे अच्छे सेल्स को नुकसान नहीं होता। - हॉर्मोन थेरपी: इसमें खास तरह के हॉर्मोन को शरीर में दिया जाता है। यह उन हॉर्मोन्स के असर को कम करता है जो कैंसर को बढ़ने में मदद करते हैं।
- स्टेम सेल ट्रांसप्लांट: इस प्रोसेस में ब्लड बनाने वाले सेल्स को शरीर में बनाया जाता है।
दरअसल, कीमोथेरपी और रेडियोथेरपी की वजह से शरीर की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।
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कैंसर से कैसे बचा जा सकता है-
● धूम्रपान, तम्बाकु, सुपारी, चना, पान, मसाला, गुटका, शराब आदि का सेवन न करें।
● विटामिन युक्त और रेशे वाला ( हरी सब्जी, फल, अनाज, दालें) पौष्टिक भोजन खायें।
● कीटनाशक एवं खाद्य संरक्षण रसायणों से युक्त भोजन धोकर खायें।
● अधिक तलें, भुने, बार-बार गर्म किये तेल में बने और अधिक नमक में सरंक्षित भोजन न खायें।
● अपना वजन सामान्य रखें।
● नियमित एक्सरसाइज करें और हेल्दी फूड खाएं।
● साफ-सुथरे, प्रदूषण रहित वातावरण की रचना करने में योगदान दें।
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