अक्सर लोग उदासी को ही डिप्रेशन समझ लेते हैं। लेकिन उदासी और डिप्रेशन अलग-अलग चीजें हैं। उदासी और डिप्रेशन के फर्क (Difference between sadness and depression) को समझना बहुत जरूरी है। आइए जानते हैं डिप्रेशन और उदासी का फर्क।
दरअसल, हम सभी रोजाना ही किसी-ना-किसी बात को लेकर अपसेट हो जाते हैं। दिन में एक-दो बार ऐसा होना सामान्य है क्योंकि जल्द ही हम नॉर्मल भी हो जाते हैं, लेकिन यही उदासी कम-से-कम दो हफ्ते या ज्यादा वक्त तक बनी रहे तो यह डिप्रेशन बन जाती है। ऐसा होने पर रोजाना के कामों पर भी असर पड़ने लगता है।
दरअसल, डिप्रेशन न्यूरो से जुड़ा एक डिसऑर्डर है, जोकि दिमाग के उस हिस्से में बदलाव आने पर होता है, जोकि मूड को कंट्रोल करता है। डिप्रेशन की चपेट में कोई भी आ सकता है। सिर्फ बड़े ही नहीं, बच्चे भी डिप्रेशन शिकार हो जाते हैं। एक स्टडी के अनुसार माना गया है कि हर 5 में से 1 युवा अपनी जिंदगी में एक बार जरूर डिप्रेशन का शिकार होता हैं। टीनएज में डिप्रेशन का कारण खासकर पैरंट्स के बीच होने वाला झगड़ा, स्कूल का रिजल्ट खराब आना या फिर किसी खास दोस्त के साथ दोस्ती टूट जाना आदि होता है। ऐसे में पैरंट्स को ध्यान रखना चाहिए कि अगर बच्चा 8-10 दिन से कुछ गुमसुम या परेशान देख रहा है तो उन्हें अपने बच्चे को साइकॉलजिस्ट के पास जरूर लेकर जाना चाहिए।
कैसे पहचानें डिप्रेशन को
अब सवाल है कि हम कैसे पहचानें कि किसी शख्स को डिप्रेशन है या नहीं है? यहां तक कि कभी-कभी इंसान तो खुद भी नहीं पहचान पाता कि वह डिप्रेशन में है या नहीं है। अगर किसी तरह वह पहचान भी लेता है तो भी इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहता कि वह डिप्रेशन में है। ऐसे में मरीज के परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों की जिम्मेदारी है कि वे डिप्रेशन के लक्षण को देखकर बीमारी को पहचानें। डिप्रेशन के कुछ प्रमुख लक्षण हैं:
- सायकॉलजिकल लक्षण
- व्यक्ति का अक्सर उदास या परेशान रहना
- हमेशा निगेटिव बातें करना
- खुद को दूसरों से कम समझना और अपने आपको ही कोसते रहना
- किसी से भी मिलने-जुलने से बचना
- खुशी के मौकों और माहौल में भी दुखी रहना
- चिढ़कर या झल्लाकर जवाब देना
- सजना-संवरना बंद कर देना
2. बायलॉजिकल लक्षण
- व्यक्ति का खूब सोने लगना
- बिल्कुल सोना बंद कर देना
- अचानक से खाना खाने की इच्छा ना होना
- बहुत ज्यादा खाना खाने लगना
3.फिजिकल लक्षण
- लगातार बिना काम किए थकान रहने लगना
- अचानक से वजन बढ़ना या तेजी से कम होने लगना
- सिरदर्द और बदन दर्द की शिकायत अक्सर बने रहना
कब लें एक्सपर्ट की मदद
अगर 10 से 15 दिन तक उदासी बनी रहे तो डॉक्टर के पास जाएं। जिस तरह हम ब्लड प्रेशर, थायरॉयड या फिर दूसरी बीमारियों का इलाज कराने के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ता है, उसी तरह डिप्रेशन के लिए भी हमें डॉक्टर से मदद लेना जरूरी होता है। डिप्रेशन के इलाज के लिए आप साइकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट से मिल सकते हैं। अगर किसी की बीमारी शुरुआती स्टेज में हैं तो ऐसे लोगों को साइकॉलजिस्ट से मिलने की सलाह दी जाती है। साइकॉलजिस्ट मरीज की काउंसलिंग काफी अच्छे से करते हैं। साइकॉलजिस्ट मरीज को दवा नहीं दे सकते। इनका काम केवल मरीज की काउंसलिंग करना होता है और उन्हें डिप्रेशन की स्थिति से बाहर निकलना होता है। अगर बीमारी बढ़ जाए तो उसे सायकायट्रिस्ट की मदद लेनी पड़ती है। सायकायट्रिस्ट मरीज की काउंसलिंग करने के साथ-साथ दवाएं भी देते हैं। सायकायट्रिस्ट के पास एमबीबीएस डिग्री के साथ ही सायकायट्री में स्पेशलाइजेशन की भी डिग्री होती है।
क्या कर सकते हैं आप
अगर आपका कोई करीबी डिप्रेशन का शिकार है तो उसे डॉक्टर को जरूर दिखाएं। इसके साथ ही आपकी जिम्मेदारी भी है कि आप उसे इस स्थिति से बाहर निकालें। किसी को डिप्रेशन से निकालने के लिए आप कैसे मदद कर सकते हैं, आइए जानते हैंः
- आप डिप्रेशन को एक आदत न मानें बल्कि स्वीकार करें कि यह एक बीमारी है जिसके लिए इलाज बहुत जरूरी होता है।
- आप डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति की बात सुनें। उसकी प्रॉब्लम को जानने की कोशिश करें।
- उसकी बातों को आराम और धीरज के साथ सुनें लेकिन कुरेदने की कोशिश न करें वरना वह हाइपर हो सकता है।
- साथ ही, उसे सलाह देने की कोशिश भी न करें क्योंकि ऐसे में मरीज को सलाह सुनना पसंद नहीं आता।
- आपको मरीज का भरोसा जीतना चाहिए ताकि वह आपसे अपनी हर बात शेयर कर सके।
- डिप्रेशन वाले शख्स की तारीफ करें और उसके साथ पॉजिटिव बातें करें।
- उसे कोई हॉबी क्लास जॉइन करानी चाहिए।
- व्यक्ति को डिप्रेशन से बाहर निकालने के लिए म्यूजिक का भी बहुत अहम रोल होता है। मरीज को आप गाने सुनाएं लेकिन ध्यान रहे कि गाने उदासी भरे न हों।
- मरीज को उसकी पसंद की चीजें उन्हें खाने के लिए दें।
- डिप्रेशन के शिकार को मेडिटेशन और एक्सरसाइज कराएं।
डिप्रेशन को लेकर कुछ मिथ भी हैंः
- डिप्रेशन कोई बीमारी नहीं, एक आदत है।
- डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति खुद ही ठीक हो जाते हैं। इन्हीं इलाज की कोई जरूरत नहीं होती। क्योंकि यह एक गंभीर बीमारी नहीं है।
- कुछ लोगों का मानना है कि डिप्रेशन पागलपन की बीमारी होती है।
- डिप्रेशन का इलाज करवाने पर उन्हें दवा लेने की लत बन जाती है।
- अगर डिप्रेशन में एक बार दवा लेना शुरू किया तो उन्हें पूरी जिंदगी भर दवाएं ही खानी पड़ती है।
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