spinal tuberculosis treatment: रीढ़ की टीबी (स्पाइनल ट्यूबरक्योलोसिस) को पॉट्स डिजीज (Pott’s Disease) भी कहा जाता है। यह एक गंभीर संक्रमण है, जो रीढ़ की हड्डियों को कमजोर कर सकता है और उचित इलाज न मिलने पर स्थायी विकलांगता भी पैदा कर सकता है।
रीढ़ की टीबी क्यों होती है?
रीढ़ की टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्योलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। यह बैक्टीरिया पहले फेफड़ों में टीबी संक्रमण पैदा करता है और फिर रक्त प्रवाह के माध्यम से रीढ़ की हड्डी तक पहुंच सकता है। यह संक्रमण मुख्य रूप से कशेरुकाओं (vertebrae) और इंटरवर्टिब्रल डिस्क (intervertebral disc) को प्रभावित करता है।
मुख्य कारण:
1. कमजोर इम्यूनिटी – कमजोर इम्यून सिस्टम होने पर टीबी के बैक्टीरिया को शरीर में फैलने का अवसर मिल जाता है।
2. अधूरा या गलत इलाज – यदि किसी व्यक्ति को पहले टीबी हो चुकी है और उसने पूरा इलाज नहीं लिया, तो बैक्टीरिया शरीर में निष्क्रिय अवस्था में रह सकता है और बाद में रीढ़ की हड्डी को संक्रमित कर सकता है।
3. पोषण की कमी – शरीर में पोषक तत्वों की कमी से प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे टीबी फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
4. डायबिटीज या अन्य पुरानी बीमारियां – मधुमेह या अन्य रोगों से जूझ रहे लोगों को संक्रमण का खतरा अधिक होता है।
5. गलत लाइफ स्टाइल– गंदगी और भीड़-भाड़ वाले स्थानों में रहने वाले लोगों को संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है।
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रीढ़ की टीबी के लक्षण
शुरुआत में इसके लक्षण बहुत हल्के हो सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, लक्षण भी गंभीर होते जाते हैं।
1. पीठ और कमर में लगातार दर्द – यह दर्द धीरे-धीरे बढ़ता है और आराम करने पर भी ठीक नहीं होता।
2. रीढ़ की कठोरता और अकड़न – सुबह उठने पर पीठ में stiffness महसूस होती है।
3. हल्का बुखार और रात को पसीना आना – शरीर में टीबी बैक्टीरिया के कारण हल्का बुखार बना रहता है।
4. वजन कम होना और भूख न लगना – संक्रमित व्यक्ति तेजी से वजन घटने की समस्या झेल सकता है।
5. रीढ़ की विकृति (Deformity) – लंबे समय तक संक्रमण रहने पर रीढ़ टेढ़ी हो सकती है, जिससे कुबड़ (hunchback) जैसी समस्या हो सकती है।
6. सुनने और महसूस करने की क्षमता में कमी – यदि टीबी का संक्रमण बढ़कर नसों पर असर डालता है, तो व्यक्ति को पैरालिसिस भी हो सकता है।
7. चलने-फिरने में कठिनाई – संक्रमण गंभीर होने पर पैरों में कमजोरी आ सकती है और व्यक्ति के लिए चलना मुश्किल हो सकता है।
रीढ़ की टीबी का इलाज
रीढ़ की टीबी का इलाज लंबे समय तक चलने वाला होता है, जिसमें दवाओं, उचित देखभाल और कभी-कभी सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
1. दवाइयां (Anti-Tuberculosis Treatment – ATT)
रीढ़ की टीबी का मुख्य इलाज एंटी-ट्यूबरकुलर ड्रग्स से किया जाता है, जो 9-12 महीने तक दी जाती हैं। इन दवाओं में शामिल हैं:
Isoniazid (INH)
Rifampicin
Pyrazinamide
Ethambutol
डॉक्टर की सलाह के अनुसार इन दवाओं को नियमित रूप से लेना जरूरी होता है। इलाज को बीच में छोड़ने से टीबी फिर से हो सकती है और यह दवाइयों के प्रति प्रतिरोधी (drug-resistant TB) भी बन सकती है। बिना डॉक्टर के इन दवाओं को बिल्कुल न लें। न ही दवाओं की मात्रा या अवधि में बदलाव करें।
2. सर्जरी (Surgery)
यदि संक्रमण गंभीर हो जाता है और रीढ़ में अस्थिरता, विकृति या न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें (जैसे लकवा) होने लगती हैं, तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह दे सकते हैं। इसमें निम्नलिखित प्रक्रियाएं शामिल हो सकती हैं:
Spinal fusion surgery – रीढ़ की कमजोर हड्डियों को मजबूत करने के लिए।
Decompression surgery – नसों पर दबाव हटाने के लिए।
3. फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन
रीढ़ की ताकत और लचीलापन बनाए रखने के लिए हल्की फिजियोथेरेपी की जाती है। यदि मरीज को पैरालिसिस हो गया हो, तो विशेष व्यायाम और थेरेपी दी जाती है।
रीढ़ की टीबी में क्या परहेज करें?
1. खान-पान पर ध्यान दें
✅ क्या खाएं:
प्रोटीन युक्त आहार – अंडे, दूध, पनीर, दालें, सोयाबीन
विटामिन डी और कैल्शियम – हड्डियों की मजबूती के लिए दूध, दही, हरी सब्जियां
फल और सूखे मेवे – इम्यून सिस्टम मजबूत करने के लिए
❌ क्या न खाएं:
जंक फूड और तली-भुनी चीजें
बहुत ज्यादा मीठा या प्रोसेस्ड फूड
शराब और धूम्रपान (यह संक्रमण को बढ़ा सकता है)
2. सही लाइफस्टाइल
नियमित रूप से धूप में बैठें, ताकि शरीर को पर्याप्त विटामिन डी मिले।
हल्के व्यायाम करें, लेकिन रीढ़ पर अधिक भार न डालें।
बहुत देर तक एक ही स्थिति में बैठने से बचें।
शरीर की सफाई और आसपास के वातावरण की स्वच्छता बनाए रखें।
3. इलाज को अधूरा न छोड़ें
टीबी की दवाइयां समय पर लें और डॉक्टर की सलाह के बिना बंद न करें।
नियमित जांच करवाते रहें ताकि संक्रमण की स्थिति का पता चलता रहे।
रीढ़ की टीबी एक गंभीर लेकिन पूरी तरह ठीक होने वाली बीमारी है, बशर्ते इसका समय पर और सही इलाज किया जाए। शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। सही दवाओं, पोषण और देखभाल से मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है और सामान्य जीवन जी सकता है।
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